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प्रति पल तेरे एहसास से प्यार करती जाती हूँ
Koi deewana kehta hai,koi paagal samajhta hai
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देखकर तेरे नयनो में जमाना भूल जाती हूँ
तेरी यादो के गुलिस्तां में रमण करती जाती हूँ
पकङकर हाथ तेरा खुद को बङा महफूज पाती हूँ
कदम तुझ ओर बढते ही सारे गम पीछे छोङ आती हूँ
देखकर तेरे नयनो में जमाना भूल जाती हूँ।
लगकर तेरे सीने से बङा सुकून पाती हूँ
लेकर अधरो से तेरा नाम इनकी तकदीर संवारती हूँ
तेरी बांहो के घेरे में अपना घर बनाती हूँ
तेरे ख्वाबो में खोने खातिर बिन नींद भी सो जाती हूँ
देखकर तेरे नयनो में जमाना भूल जाती हूँ।
तेरी चाहत की खुश्बू से अपनी साँसो को महकाती हूँ
देखती हूँ प्रतिबिम्ब दर्पण में तुझे सामने पाती हूँ
सोचकर साथ में तुझको मन ही मन हर्षाती हूँ
प्रति पल तेरे एहसास से प्यार करती जाती हूँ
देखकर तेरे नयनो में जमाना भूल जाती हूँ।
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जमाना कह रहा उसे ही क्यो महसूस करती जाती है
जज्बात को अल्फाजो से क्यो पिरोती जाती है
उसमें खोकर आँखें क्यो खाली कर जाती है
उसे ही अब क्यों लिखती जाती है।
जमाना कह रहा अपने पिया की यादो में इतना क्यों खोती जाती है
सुबह को शाम और शाम को सुबह बताती है
प्रेम की किताब ही क्यों पढती जाती है
उसे ही अब क्यों लिखती जाती है।
जमाना कह रहा लहर बन साहिलो से क्यो बार बार टकराती है
सरिता बन क्यों समुन्दर से मिलने आती है
ख्यालो के भँवर में क्यों फसती जाती है
उसे ही अब क्यों लिखती जाती है।
जमाना कह रहा तितली सा अस्तित्व तेरा क्यों इतना इतराती है
छूते ही बिखर जायेगी क्यों खौफ नहीं खाती है
उसकी ही खुश्बू से अब क्यों महकती जाती है
उसे ही अब क्यों लिखती जाती है।
जमाना कह रहा चांदनी रातो में क्यों रोज बैठने आती है
बेबजह क्यों आसमां को निहारती जाती है
आँसुओ से क्यो उसकी तस्वीर बनाती है
उसे ही अब क्यों लिखती जाती है।
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आफताब की एक किरण दिल की खिङकी पर आयी थी
अलसायी थी बरसो से ये गुमनाम जमीन
समेटे थी ढेरो कहानियाँ होकर संगीन
आज सुबह सवेरे अोस की बूंद सी खिल आयी थी
आफताब की एक किरण दिल की खिङकी पर आयी थी।
उजङे बगीचे को मिला था आज फूलो का उपहार
मिट गया था पतझङ हर तरफ आ गयी थी बहार
हवाओ की भीनी खुश्बू संग पङ रही थी हल्की फुहार
सावन के मौसम सी आज रंगत छायी थी
आफताब की एक किरण दिल की खिङकी पर आयी थी।
व्याकुल ह्दय किरण से मिलने को कर बैठा था उपवास
बसन्ती सखियां भी खिलखिलाती कर रही थी उपहास
हर क्षण मानो लगता था हो जैसे कारावास
नदिया सी बनकर आज उफान लायी थी
आफताब की एक किरण दिल की खिङकी पर आयी थी।
प्रेयसी बन पिया मिलन में कर बैठी थी साज श्रंगार
आज फलित हो गयी थी ईश्वर से की गयी हर मनुहार
त्याग सर्वस्व अपना प्रेम पथ पर चलने को थी तैयार
जलतरंग बन आज किनारे तक बह आयी थी
आफताब की एक किरण दिल की खिङकी पर आयी थी।
सितारे कर रहे थे गुफ्तगू मदहोश होकर के
महताब निखर रहा था चांदनी को आगोश में लेकर के
आसमान जगमगा रहा था जोरो से आनन्दित होकर के
जुगनुओ के घर भी आज बारात आयी थी
आफताब की एक किरण दिल की खिङकी पर आयी थी।
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उन आँखों को न खोलूं मैं,
जिन आँखों में तू रहता हो।
उन ख्वाबो को न देखूं मैं,
जिनमे न तू मिलता हो।
उन राहो पर मेरे रास्ते हो,
जिन राहो पर तू चलता हो।
तेरे संग वहाँ तक चल दूं मैं,
जहाँ पर सूरज ढलता हो।
उस रात की सुबह मैं न होने दूं,
जिस रात तेरा ख्वाब मुझमें पलता हो।
नदिया बन बह लूंगी मिलने को,
अगर तू सागर बनकर बहता हो।
शमां बन जाऊँगीं तुझ संग,
अगर तू परवाना बनकर जलता हो।
हर जन्म में तेरी हीर बनूंगी,
बस तू रांझा बनकर मिलता हो।
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तुझको देखा तो मुस्कुराना आ गया
बिन कुछ कहे सुने बोले बोलना आ गया
बसता है इस रूह की गहराई में
मेरे जिस्म के हर एक हिस्से में
मेरे रोम -रोम मेरी हर साँस में
जब भी देखा तो बस लिखना आ गया।
कैसे कहूं क्या है अहमियत तेरी
शब्द ही न मिले इस बात पर रोना आ गया
इस एहसास को महसूस करूं
लिखूं कि सहज कर रखूं
या मन के बख्से में छुपा लूं कहीं हमेशा के लिए
कुछ समझ भी न आया और
बिन कुछ समझे सब समझना आ गया।
जिन्दगी के सफर में जब भी ठोकर लगी
गिरने से पहले तू हाथ थामने आ गया
दिल का दर्द मोती बना जब भी
आँसू बनके जज्बात बहे जब भी
हौसला टूटकर बिखरने लगा जब भी
देके आँखों में एक नया सपना
उम्मीद की रोशनी से हर तरफ उजाला करने आ गया।
लगा मुझे जब जब हूँ अकेले
कभी फूलो की खुश्बू में
कभी हवाओ के ठण्डे झोंके में
हूँ आस पास तेरे एहसास कराने आ गया
साथ खङा हूँ तेरे हर कदम
है न तू अकेले कभी भी बताने आ गया।
तुझसे जुङे विश्वास से
मेरी जिन्दगी की हर एक लङाई में
मजबूत हूँ एक योद्धा जैसे
साथ तेरा मेरा जब तलक
जब तक सृष्टि और मेरी रूह
बैठी हूँ तुझको लिखने
शब्दो से सामन्जस्य बनाने
तुझे सहेजकर अपनी कला में आनन्द आ गया।
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मैं तुझे लिखती रही,
अफसाना और बनता गया।
लिखी तुझ संग ख्वाहिशे अपनी,
ख्वाबो का महल और ढलता गया।
रूबरू हुयी तुझ संग चाहत से ,
मेरा दिल तेरा और दीवाना बनता गया।
चली जब जब राह में संग तेरे,
मेरी मंजिल का पथ और आसान होता गया।
पढी जब भी तूने मेरी खामोश निगाहे,
मेरे अधरो पर टिका फसाना और ठहरता गया।
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nice...
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