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जिस क्षण तुम मुझे स्वयं से अलग करो,
वह मेरे जीवन का अन्तिम क्षण हो।
न चाह रहे फिर कुछ पाने की,
मृत्यु पार भी सिर्फ तुम ही तुम हो।
विलग होकर तुमसे मिले अमरता,
हँसकर वह भी मुझे अस्वीकार हो।
या दे ईश्वर सारा जग मुझको तुम बिन,
कोई स्वार्थ कभी न तुमसे बढ़कर हो।
प्रेम में तुम पर मेरा सब न्योछावर,
तुम्हारी पीड़ा पहले मुझको हासिल हो।
कभी न तुम तक पहुंच सके कोई दुख,
बस तुम्हारी मुस्कान हो मेरा जीवन हो।
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बेफिक्र हो चली थी ज्योंही तुम्हारा काँधा मिला था
शाम ढलते ढलते तुम्हारे मेरे रास्ते बदल गये थे
समझा लिया था दिल को उज्ज्वल भविष्य की आशा में
सच कहती हूँ प्रियवर लौटते हुए हजार टुकड़े हुए थे
जीवन में एक पल को अँधेरा होने लगा था
पर सुकुन था एक दिन में महीनों के लम्हे जी लिए थे
थामकर हाथ तुम्हारा छोड़ने का मन तो नही था
फिर मिलेंगे ये सोचकर हम दोनो तसल्ली कर लिये थे
घर को लौट आयी थी लेकर तुम्हारी खुश्बू
तुम्हारे दिये हुए सभी खत आज कई दफा पढ़ लिये थे
बार बार अपनी नादानियों को कोस रही थी
कुछ कीमती लम्हे तुमसे नाराजगी में गवा दिये थे
सोच रही थी काश पूरा जीवन यूँ ही बीत जाता
फिर समाज और परिवार के कर्तव्य के ख्याल ने सब जबाब दे दिये थे।
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चाँद की मोहब्बत भरी रात
या कहूँ दर्द भरी रात
इस चमकीली रात में
बूँद बूँद झरती चाँदनी
जहां चाँद से जुदा होती
सुदूर धरती पर कहीं जाकर
दर -ब -दर ठिकाना ढ़ूढ़ती
कभी घास पर जा बैठती
कभी फूलो की पंखुड़ियों पर सजती
दूर धरा से चाँद को निहारती
होकर रागमय आनन्द उठाती
न उसे मृत्यु का भय
न ही अस्तित्व मिटने का अफसोस
न ही अनभिज्ञ सूर्य के सत्य से
बस हैं चन्द्र के प्रेम में बाँबरी
करके बलिदान अपने जीवन का
चन्द्र के लिए सूर्य से जीवनदान है मांगती
अपने अनन्त प्रेम को जीवित रख सके
ताकि कल रात फिर मिल सके
रागिनी बनकर, रोशनी बनकर
और फिर मिट सके शबनमी मोती बनकर
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जो चोट खाकर बैठे है
वो शायर बन बैठे है
टूटे दिल के सारे टुकड़े
अल्फाजो से जोड़ बैठे है
हाल ए दिल जमाने में
सुनाने और जाये कहां
कोरे पन्नो के सिवा
सब मशरूफ बैठे है
कोई मशगूल है खुद में
कोई किस्मत का मारा है
एक टूटा दिल लेकर के फिरता है
तो दूजे टूटे दिल का सौदा करने को बैठे है
आशिकी में है बस दर्द ही दर्द
खुशी का नाम झूठा है
जिसने की वो तो लुट ही गया
जिसने ना की वो करने को बैठे है
मालूम है कि दर्द ही मिलना है
मुकम्मल हो भी नहीं सकती
साथ छोङ चाहने वाले का
मुकद्दर का हाथ थामे बैठे है
अजीब है ये खेल जज्बातो का
साँसे तो आती जाती है
मगर किसी और के नाम से ना जाने किसका दिल सीने में छुपाये बैठे है।
*********************************************
खिङकी से दबे पाँव भरी दोपहरी बिन अनुमति
चला आया गर्म हवा का स्पर्श आकर ठहर गया गालों पर
आँखें मूँदे बैठी थी तुम्हारी याद लिए लगा जैसे छुआ तुम्हारे हाथों ने
तुम चले आये हो झोंके संग खिल गयी मुस्कान अधरो पर
दूर से तुमको आज बङा करीब पाया।
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तुम्हारी याद आँखों से, मोती बन गालों पर लुढ़क गयी।
थोड़ा फिर चली दो कदम, लबों पर आकर ठहर गयी।
तुम्हारी नादान बातें, निकली पिटारे से हर तरफ बिखर गयी।
जिन्हें सुनकर मैं कहती थी, चुप रहो आज उन्ही से निखर गयी।
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तङपनें दो हर पहर,
मुझे मेरी मोहब्बत जीने दो।
उसके संग बिताये हर लम्हे को,
दिल के जर्रे-जर्रे में कैद करने दो।
ना छेङ़ो मुझे बार-बार,
बस उसके साथ थोड़ा खामोश बैठने दो।
नहीं चाहिए झूठी मुस्कुराहटें,
मुझे उसकी चाहत के मोती पिरोने दो।
**********************
रात तेरी यादों संग कट जाती है,
दिन मेरा संग तन्हायी के गुजर जाता है।
जब संभाले नहीं संभलता ये सफर,
तब तू आकर कहीं से आहट दे जाता है।
खिल जाती है तबस्सुम लबों पर,
मसर्रत से जब तेरा लम्स याद आ जाता है।
बिखरी साँसे महकने लगती है,
बंजर जमीं पर चाहत की जब तू बूँदे गिराता है।
बेजान मौसम के रूख बदलने लगते हैं,
जब पतझङ में सावन की बहारें लाता है।
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तू रूठा तो लगा,
जिन्दगी की शाम हो गयी।
ठहर गये लब्ज जुबां पर ही,
खामोशी इन होंठों की गुलाम हो गयी।
सूखी थी आँखों की बंजर जमीं,
बिन मौसम ही आँसुओ की बरसात हो गयी।
दिल की धड़कनें भी थी खफा,
बरसा हो कहर ऐसी कयामत की रात हो गयी।
जिस क्षण तुम मुझे स्वयं से अलग करो,
वह मेरे जीवन का अन्तिम क्षण हो।
न चाह रहे फिर कुछ पाने की,
मृत्यु पार भी सिर्फ तुम ही तुम हो।
विलग होकर तुमसे मिले अमरता,
हँसकर वह भी मुझे अस्वीकार हो।
या दे ईश्वर सारा जग मुझको तुम बिन,
कोई स्वार्थ कभी न तुमसे बढ़कर हो।
प्रेम में तुम पर मेरा सब न्योछावर,
तुम्हारी पीड़ा पहले मुझको हासिल हो।
कभी न तुम तक पहुंच सके कोई दुख,
बस तुम्हारी मुस्कान हो मेरा जीवन हो।
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बेफिक्र हो चली थी ज्योंही तुम्हारा काँधा मिला था
शाम ढलते ढलते तुम्हारे मेरे रास्ते बदल गये थे
समझा लिया था दिल को उज्ज्वल भविष्य की आशा में
सच कहती हूँ प्रियवर लौटते हुए हजार टुकड़े हुए थे
जीवन में एक पल को अँधेरा होने लगा था
पर सुकुन था एक दिन में महीनों के लम्हे जी लिए थे
थामकर हाथ तुम्हारा छोड़ने का मन तो नही था
फिर मिलेंगे ये सोचकर हम दोनो तसल्ली कर लिये थे
घर को लौट आयी थी लेकर तुम्हारी खुश्बू
तुम्हारे दिये हुए सभी खत आज कई दफा पढ़ लिये थे
बार बार अपनी नादानियों को कोस रही थी
कुछ कीमती लम्हे तुमसे नाराजगी में गवा दिये थे
सोच रही थी काश पूरा जीवन यूँ ही बीत जाता
फिर समाज और परिवार के कर्तव्य के ख्याल ने सब जबाब दे दिये थे।
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चाँद की मोहब्बत भरी रात
या कहूँ दर्द भरी रात
इस चमकीली रात में
बूँद बूँद झरती चाँदनी
जहां चाँद से जुदा होती
सुदूर धरती पर कहीं जाकर
दर -ब -दर ठिकाना ढ़ूढ़ती
कभी घास पर जा बैठती
कभी फूलो की पंखुड़ियों पर सजती
दूर धरा से चाँद को निहारती
होकर रागमय आनन्द उठाती
न उसे मृत्यु का भय
न ही अस्तित्व मिटने का अफसोस
न ही अनभिज्ञ सूर्य के सत्य से
बस हैं चन्द्र के प्रेम में बाँबरी
करके बलिदान अपने जीवन का
चन्द्र के लिए सूर्य से जीवनदान है मांगती
अपने अनन्त प्रेम को जीवित रख सके
ताकि कल रात फिर मिल सके
रागिनी बनकर, रोशनी बनकर
और फिर मिट सके शबनमी मोती बनकर
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जो चोट खाकर बैठे है
वो शायर बन बैठे है
टूटे दिल के सारे टुकड़े
अल्फाजो से जोड़ बैठे है
हाल ए दिल जमाने में
सुनाने और जाये कहां
कोरे पन्नो के सिवा
सब मशरूफ बैठे है
कोई मशगूल है खुद में
कोई किस्मत का मारा है
एक टूटा दिल लेकर के फिरता है
तो दूजे टूटे दिल का सौदा करने को बैठे है
आशिकी में है बस दर्द ही दर्द
खुशी का नाम झूठा है
जिसने की वो तो लुट ही गया
जिसने ना की वो करने को बैठे है
मालूम है कि दर्द ही मिलना है
मुकम्मल हो भी नहीं सकती
साथ छोङ चाहने वाले का
मुकद्दर का हाथ थामे बैठे है
अजीब है ये खेल जज्बातो का
साँसे तो आती जाती है
मगर किसी और के नाम से ना जाने किसका दिल सीने में छुपाये बैठे है।
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खिङकी से दबे पाँव भरी दोपहरी बिन अनुमति
चला आया गर्म हवा का स्पर्श आकर ठहर गया गालों पर
आँखें मूँदे बैठी थी तुम्हारी याद लिए लगा जैसे छुआ तुम्हारे हाथों ने
तुम चले आये हो झोंके संग खिल गयी मुस्कान अधरो पर
दूर से तुमको आज बङा करीब पाया।
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तुम्हारी याद आँखों से, मोती बन गालों पर लुढ़क गयी।
थोड़ा फिर चली दो कदम, लबों पर आकर ठहर गयी।
तुम्हारी नादान बातें, निकली पिटारे से हर तरफ बिखर गयी।
जिन्हें सुनकर मैं कहती थी, चुप रहो आज उन्ही से निखर गयी।
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तङपनें दो हर पहर,
मुझे मेरी मोहब्बत जीने दो।
उसके संग बिताये हर लम्हे को,
दिल के जर्रे-जर्रे में कैद करने दो।
ना छेङ़ो मुझे बार-बार,
बस उसके साथ थोड़ा खामोश बैठने दो।
नहीं चाहिए झूठी मुस्कुराहटें,
मुझे उसकी चाहत के मोती पिरोने दो।
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रात तेरी यादों संग कट जाती है,
दिन मेरा संग तन्हायी के गुजर जाता है।
जब संभाले नहीं संभलता ये सफर,
तब तू आकर कहीं से आहट दे जाता है।
खिल जाती है तबस्सुम लबों पर,
मसर्रत से जब तेरा लम्स याद आ जाता है।
बिखरी साँसे महकने लगती है,
बंजर जमीं पर चाहत की जब तू बूँदे गिराता है।
बेजान मौसम के रूख बदलने लगते हैं,
जब पतझङ में सावन की बहारें लाता है।
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तू रूठा तो लगा,
जिन्दगी की शाम हो गयी।
ठहर गये लब्ज जुबां पर ही,
खामोशी इन होंठों की गुलाम हो गयी।
सूखी थी आँखों की बंजर जमीं,
बिन मौसम ही आँसुओ की बरसात हो गयी।
दिल की धड़कनें भी थी खफा,
बरसा हो कहर ऐसी कयामत की रात हो गयी।
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